सूखी धरती के परतों को देखकर मन व्यथित सा हो चला,
पंख लगाकर मै आकाश कि ओर उड़ चला.
मन में एक प्रश्न लिए, कि!
कब आएगी बहार इस ओर? कब नाचेंगे धरती पर मोर?
और, कब करेंगी बारिश कि बूंदे एक मीठा सा शोर?

पर मुझे एक निराशा ही हाथ लगी,
बादलों का का कारवां नहीं, बस एक छोटी सी टोली मिली.
मन को दिलासा देने के लिए कुछ बूंदे उधार ले ली मैंने.
फिर वापस धरती पर आने कि राह पकड़ ली मैंने.

अब तो लगता है उम्मीद भी टूट जायेगी.
बारिश कि बूंदों कि कमी आंसुओं से पूरी कि जायेगी.

4 Comments

  1. BD July 6, 2010 at 4:55 am - Reply

    SUBHAAN ALLAH… SUBHAAN ALLAH

    NA HO NIRAASH RAHUL…. NA HO NIRAASH….

    YE AMBER PHIR SE GARJEGAA…
    YE BADAL PHIR SE BARSENGE…

  2. Unknown July 7, 2010 at 8:37 am - Reply

    LAGE RAHO BHAI LAGE RAHO

    I LIKE VERY MUCH

  3. Unknown June 8, 2014 at 5:30 pm - Reply

    बहुत खूब वाह

  4. Rahul Pandey's Blog June 8, 2014 at 5:31 pm - Reply

    धन्यवाद……!!

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