सूखी धरती के परतों को देखकर मन व्यथित सा हो चला,
पंख लगाकर मै आकाश कि ओर उड़ चला.
मन में एक प्रश्न लिए, कि!
कब आएगी बहार इस ओर? कब नाचेंगे धरती पर मोर?
और, कब करेंगी बारिश कि बूंदे एक मीठा सा शोर?
पंख लगाकर मै आकाश कि ओर उड़ चला.
मन में एक प्रश्न लिए, कि!
कब आएगी बहार इस ओर? कब नाचेंगे धरती पर मोर?
और, कब करेंगी बारिश कि बूंदे एक मीठा सा शोर?
पर मुझे एक निराशा ही हाथ लगी,
बादलों का का कारवां नहीं, बस एक छोटी सी टोली मिली.
मन को दिलासा देने के लिए कुछ बूंदे उधार ले ली मैंने.
फिर वापस धरती पर आने कि राह पकड़ ली मैंने.
अब तो लगता है उम्मीद भी टूट जायेगी.
बारिश कि बूंदों कि कमी आंसुओं से पूरी कि जायेगी.
SUBHAAN ALLAH… SUBHAAN ALLAH
NA HO NIRAASH RAHUL…. NA HO NIRAASH….
YE AMBER PHIR SE GARJEGAA…
YE BADAL PHIR SE BARSENGE…
LAGE RAHO BHAI LAGE RAHO
I LIKE VERY MUCH
बहुत खूब वाह
धन्यवाद……!!