आज फिर वही मेरी कहानी आ गयी
कुछ तेरी और कुछ मेरी जुबानी आ गयी
लोग हँसते हैं और पूछते हैं वही सवाल –
कहो, वो तुम्हारी पुरानी रवानी कहाँ गयी?
उधार मांगने को जी चाहता है इस बार,
वही बेफिक्री, वो मनमानी कहाँ गयी !
आओ साथ बैठो, मेरे थोड़े दर्द बाँट लो,
वो तुम्हारी परवा, तुम्हारी मेहरबानी कहाँ गयी।
कुछ तेरी और कुछ मेरी जुबानी आ गयी
लोग हँसते हैं और पूछते हैं वही सवाल –
कहो, वो तुम्हारी पुरानी रवानी कहाँ गयी?
उधार मांगने को जी चाहता है इस बार,
वही बेफिक्री, वो मनमानी कहाँ गयी !
आओ साथ बैठो, मेरे थोड़े दर्द बाँट लो,
वो तुम्हारी परवा, तुम्हारी मेहरबानी कहाँ गयी।
Kya baat hai pandey ji. I guess I am also struck at that point of adulthood where I wonder where is all that carelessness attitude gone!