खुशबू की तरह महका हूँ, चिड़ियों की तरह चहका हूँ। हवाओं की तरह बहका हूँ, वो मेरा बचपन ही कुछ ऐसा ही था अब तो इस शहर में साँसों के लिए भी तरसा हूँ
सरपत के झुंडो में,
खेतो में बागीचों में।
नदियों में तालाबों में,
सरपत के झुंडो में,
खेतो में बागीचों में।
नदियों में तालाबों में,
खेला हूँ, कूदा हूँ और खूब दौड़ा हूँ।
पर अब तो इस शहर में एक बारामदे के लिए तरसा हूँ।
कच्चे पक्के रास्तों पर,
पगडंडियों पर चौरास्ते पर।
घर के पीछे वाले मैदानो पर,
साइकिल के साथ खूब भागा हूँ और गिरा हूँ,
पर अब तो इस शहर में एक खाली सड़क के लिए तरसा हूँ।