तेल के दिए कम और बिजली कि लड़ियों कि दौड़ थी।
पर फिर भी इसमें कुछ पुरानी यादें ताजा थीं,
धान कि रंगोली, तेल के दिए और माँ कि पूजा शामिल थी।
पर और भी कुछ बदल गया है कल और आज में,
दीवाली के त्यौहार में, इसके मानाने के अंदाज़ में।
पांव तो आज भी छूते हैं, बच्चे मेरे गांव में,
पर Happy Diwali गूंजता है इन सारे ‘प्रणाम’ में।
कुछ साल पहले ‘दिये’ कुम्हार दे जाता था,
बदले में उसके खेत से अनाज ले जाता था।
आज कल बाज़ार में खरीदने पर भी नहीं मिलते ये,
एक ज़माने में मेरा छोटा भाई, पुराने दीयों से तराज़ू बनता था।
अब कोई घर को गोबर से लीपता नहीं है
ना ही बाहर कि दीवालों पर चूना लगता है।
पक्के घरों कि बात ही कुछ और है,
क्यूंकि वहाँ ८-१० साल में ही कभी, paint लग पाता है।
सब कुछ शायद और भी तेजी से बदलता जाएगा,
बिजली कि लड़ियों और मोमबत्तियों से दीवाली मन जाएगा।
बस इतनी सी गुज़ारिश है कि दिल से उल्लास कम ना हो,
मिट्टी दीये भले ना हो, पर प्यार कि रौशनी हर और हो।