जब धरा पर आंच आयी, वीर वो आगे बढ़े
जब धरा पर आंच आयी, वीर वो आगे बढ़े। दुश्मनों के पैर उखड़े, छिन्न भिन्न से धड़ पड़े। सैन्य बल का मनोबल, आकाश से ऊंचा रहा। दुश्मनों की आहट
अपने गीतों में मेरा नाम गुनगुनायेगी
अपने गीतों में मेरा नाम गुनगुनायेगी, लफ्ज़ बन कर मेरे रूह पे वो छायेगी। बात करने से ही बात बनेगी यारों, उसकी हर बात में बात मेरी आयेगी। दूर होने
तेरे उसूल गुनहगार हैं मेरे बिखर जाने के
तेरे उसूल गुनहगार हैं मेरे बिखर जाने के,तेरे एहसासों के कदरदान हम पहले भी थे।साँस आती थी तेरे पास आने के बाद,ज़िंदगी पे तुम मेहरबान पहले भी थे।ग़म का साया दूर रहा तेरे होने से,निचले पायदान पर हम पहले भी थे।दूर से ही सही, पर साथ निभाते रहना,मेरे बाग़ के बाग़बान तुम पहले भी थे।
अपने गीतों में मेरा नाम गुनगुनायेगी
अपने गीतों में मेरा नाम गुनगुनायेगी,लफ्ज़ बन कर मेरे रूह पे वो छायेगी। बात करने से ही बात बनेगी यारों,उसकी हर बात में बात मेरी आयेगी।दूर होने पर उसे फिक्र जो होगी,ऐसे रिश्ते में दरार कहाँ आयेगी। तल्ख़
जब धरा पर आंच आयी, वीर वो आगे बढ़े
जब धरा पर आंच आयी,वीर वो आगे बढ़े।दुश्मनों के पैर उखड़े,छिन्न भिन्न से धड़ पड़े।सैन्य बल का मनोबल,आकाश से ऊंचा रहा।दुश्मनों की आहट मिली,तो, अपनी आहुति दे पड़े।#IndianArmy
हम अक्स ढूँढते रहे उनके चेहरे में
हम अक्स ढूँढते रहे उनके चेहरे में,वो हाथ फेरते रहे उनके चेहरे में।दिया था, बुझ गया यूँ ही मगर,तूफ़ान ढूँढते रहे उनके चेहरे में।ज़माने में हज़ार रंग बिखरे हुए से हैं,हम रंग ढूँढते रहे उनके चेहरे मेंदे दिया मात समंदर को भी, मगरडूब ही गये हम उनके चेहरे में।चलो दूर करो गिले-शिकवे सभी,यूँ नूर आ गया है उनके चेहरे में
ख़बर रखना मेरी ऐ दोस्त, एक दिन ख़बर बनूँगा
ख़बर रखना मेरी ऐ दोस्त, एक दिन ख़बर बनूँगा, अख़बारों के पन्नों पर,
हिज्र का वक़्त है, फिर मिलें ना मिलें
हिज्र का वक़्त है, फिर मिलें ना मिलेंइक हर्फ़ ही सही, थोड़ा तो गुनगुना दे!तिरा ख़ंजर मिल गया यूँ मिरी पीठ से झूठा ही सही, चंद अश्क़ तो बहा दे।ज़मानतों पर रिहा अब ज़िंदगी अपनीजो भी कर, चल फ़ैसला तो सुना दे।ऐसा क्यूँ कि लहू बिखरा है मैदानों मेंकम-से-कम इश्क़ वाली हवा तो चला दे।तू आया, ठहरा और फिर चल दियाजा मगर अपनी यादों को तो ठहरा दे।
सजीव या अभिज्ञ
रक्त में उबाल है, और हृदय में उद्वेग।मज्जा है कशेरुकाओं में,और शिराओं में वेग।ये प्रमाण हैं-हमारे सजीव होने का।पर क्या हम अभिज्ञ हैं?या मात्र सजीव?इन दोनो प्रश्नों में निहित है-अस्तित्व या अस्तित्व-विहीन होने की परिभाषा।
इक वक़्त के बाद
उम्मीदें साथ नहीं देतीं इक वक़्त के बाद,इक वक़्त के बाद अमल करना पड़ता है।हौसला मगर मुमकिन है इक वक़्त के बाद,इक वक़्त के बाद कदम बढ़ाना पड़ता है।दिलासे झूठे हो जाते हैं इक वक़्त के बाद,इक वक़्त के बाद साथ निभाना पड़ता है।तुम गये और याद भी गयी इक वक़्त के बाद,इक वक़्त के बाद चेहरा दिखाना पड़ता है।दिल जुड़ा फिर टूटा भी इक वक़्त के बाद,इक वक़्त के बाद प्यार जताना पड़ता है।