urdu

You Are Currently Here:Home > urdu

तेरे उसूल गुनहगार हैं मेरे बिखर जाने के

तेरे उसूल गुनहगार हैं मेरे बिखर जाने के,तेरे एहसासों के कदरदान हम पहले भी थे।साँस आती थी तेरे पास आने के बाद,ज़िंदगी पे तुम मेहरबान पहले भी थे।ग़म का साया दूर रहा तेरे होने से,निचले पायदान पर हम पहले भी थे।दूर से ही सही, पर साथ निभाते रहना,मेरे बाग़ के बाग़बान तुम पहले भी थे।

हम अक्स ढूँढते रहे उनके चेहरे में

हम अक्स ढूँढते रहे उनके चेहरे में,वो हाथ फेरते रहे उनके चेहरे में।दिया था, बुझ गया यूँ ही मगर,तूफ़ान ढूँढते रहे उनके चेहरे में।ज़माने में हज़ार रंग बिखरे हुए से हैं,हम रंग ढूँढते रहे उनके चेहरे मेंदे दिया मात समंदर को भी, मगरडूब ही गये हम उनके चेहरे में।चलो दूर

Go to Top