shayari

You Are Currently Here:Home > shayari

तेरे उसूल गुनहगार हैं मेरे बिखर जाने के

तेरे उसूल गुनहगार हैं मेरे बिखर जाने के,तेरे एहसासों के कदरदान हम पहले भी थे।साँस आती थी तेरे पास आने के बाद,ज़िंदगी पे तुम मेहरबान पहले भी थे।ग़म का साया दूर रहा तेरे होने से,निचले पायदान पर हम पहले भी थे।दूर से ही सही, पर साथ निभाते रहना,मेरे बाग़ के बाग़बान तुम पहले भी थे।

हम अक्स ढूँढते रहे उनके चेहरे में

हम अक्स ढूँढते रहे उनके चेहरे में,वो हाथ फेरते रहे उनके चेहरे में।दिया था, बुझ गया यूँ ही मगर,तूफ़ान ढूँढते रहे उनके चेहरे में।ज़माने में हज़ार रंग बिखरे हुए से हैं,हम रंग ढूँढते रहे उनके चेहरे मेंदे दिया मात समंदर को भी, मगरडूब ही गये हम उनके चेहरे में।चलो दूर

हिज्र का वक़्त है, फिर मिलें ना मिलें

हिज्र का वक़्त है, फिर मिलें ना मिलेंइक हर्फ़ ही सही, थोड़ा तो गुनगुना दे!तिरा ख़ंजर मिल गया यूँ मिरी पीठ से झूठा ही सही, चंद अश्क़ तो बहा दे।ज़मानतों पर रिहा अब ज़िंदगी अपनीजो भी कर, चल फ़ैसला तो सुना दे।ऐसा क्यूँ कि लहू बिखरा है मैदानों मेंकम-से-कम इश्क़ वाली हवा तो चला दे।तू आया, ठहरा और फिर चल दियाजा मगर अपनी यादों को तो ठहरा दे।

इक वक़्त के बाद

उम्मीदें साथ नहीं देतीं इक वक़्त के बाद,इक वक़्त के बाद अमल करना पड़ता है।हौसला मगर मुमकिन है इक वक़्त के बाद,इक वक़्त के बाद कदम बढ़ाना पड़ता है।दिलासे झूठे हो जाते हैं इक वक़्त के बाद,इक वक़्त के बाद साथ निभाना पड़ता है।तुम गये और याद भी गयी इक वक़्त के बाद,इक वक़्त के बाद चेहरा दिखाना पड़ता है।दिल जुड़ा फिर टूटा भी इक वक़्त के बाद,इक वक़्त के बाद प्यार जताना पड़ता है।

जब चली मेरी क़िस्मत मुझे छोड़ कर

                जब चली मेरी क़िस्मत मुझे छोड़ कर        बाजुओं पर मेरे फिर यक़ीं आ गया। 

Go to Top