आज फिर से क्रांति का, बिगुल बजाते क्यूँ नहीं?
आज फिर से क्रांति का, बिगुल बजाते क्यूँ नहीं?एक नए समाज को, फिर बनाते क्यूँ नहीं?क्यूँ
आज फिर से क्रांति का, बिगुल बजाते क्यूँ नहीं?एक नए समाज को, फिर बनाते क्यूँ नहीं?क्यूँ
सूखी धरती के परतों को देखकर मन व्यथित सा हो
क्षण प्रतिक्षण जीवन कि नैया, मध्य भंवर को जाती है.पतवार ना