कैंपस की यादें – एक पुरानी कविता (२००७)
भूले नहीं वो दिन, जब हम ख्वाबों में जिया करते थे,जमीं
भूले नहीं वो दिन, जब हम ख्वाबों में जिया करते थे,जमीं
आज फिर वही मेरी कहानी आ गयीकुछ तेरी और कुछ मेरी जुबानी
सम्भव है साथ तुम्हारा हो हाथों में हाथ तुम्हारा हो।
रात को सुबह होने तक मत देख।कुछ सपने देख, सपनों
एक अरसेसे कुछ लिखा ही नहीं।ऐसा नहीं कि कुछ मिला ही नहीं!कलम
एक अलग प्रयास, सही गलत पता नहीं। और जैसा कि
वेदना क्या केवल स्वरों सेमुख के हाव भाव व्यर्थतुम्हे मेरे
सत्य क्या है ?जो आँखों के सामने घटित हुआ?जो इतिहास
खुशबू की तरह महका हूँ, चिड़ियों की तरह चहका हूँ।
पत्थरों के हैं ये जंगल, पत्थरों के ये मकां,बन गया