यही इश्क़ है
ये जो तेरा सर झुका कर शर्माना है, यही इश्क़
ये जो तेरा सर झुका कर शर्माना है, यही इश्क़
तुम्हारा अस्तित्व उससे है, तुम्हारा व्यक्तित्व उससे है। वो हर
चलो दोस्तों को फ़ोन लगाते हैं, कुछ बताते हैं, कुछ
तेरे उसूल गुनहगार हैं मेरे बिखर जाने के,तेरे एहसासों के कदरदान हम पहले भी थे।साँस आती थी तेरे पास आने के बाद,ज़िंदगी पे तुम मेहरबान पहले भी थे।ग़म का साया दूर रहा तेरे होने से,निचले पायदान पर हम पहले भी थे।दूर से ही सही, पर साथ निभाते रहना,मेरे बाग़ के बाग़बान तुम पहले भी थे।
अपने गीतों में मेरा नाम गुनगुनायेगी,लफ्ज़ बन कर मेरे रूह पे वो
हम अक्स ढूँढते रहे उनके चेहरे में,वो हाथ फेरते रहे उनके चेहरे में।दिया था, बुझ गया यूँ ही मगर,तूफ़ान ढूँढते रहे उनके चेहरे में।ज़माने में हज़ार रंग बिखरे हुए से हैं,हम रंग ढूँढते रहे उनके चेहरे मेंदे दिया मात समंदर को भी, मगरडूब ही गये हम उनके चेहरे में।चलो दूर
रक्त में उबाल है, और हृदय में उद्वेग।मज्जा है कशेरुकाओं में,और शिराओं में वेग।ये प्रमाण हैं-हमारे सजीव होने का।पर क्या हम अभिज्ञ हैं?या मात्र सजीव?इन दोनो प्रश्नों में निहित है-अस्तित्व या अस्तित्व-विहीन होने की परिभाषा।
उम्मीदें साथ नहीं देतीं इक वक़्त के बाद,इक वक़्त के बाद अमल करना पड़ता है।हौसला मगर मुमकिन है इक वक़्त के बाद,इक वक़्त के बाद कदम बढ़ाना पड़ता है।दिलासे झूठे हो जाते हैं इक वक़्त के बाद,इक वक़्त के बाद साथ निभाना पड़ता है।तुम गये और याद भी गयी इक वक़्त के बाद,इक वक़्त के बाद चेहरा दिखाना पड़ता है।दिल जुड़ा फिर टूटा भी इक वक़्त के बाद,इक वक़्त के बाद प्यार जताना पड़ता है।
जब चली मेरी क़िस्मत मुझे छोड़ कर बाजुओं पर मेरे फिर यक़ीं आ गया।