कैंपस की यादें – एक पुरानी कविता (२००७)
भूले नहीं वो दिन, जब हम ख्वाबों में जिया करते थे,जमीं
भूले नहीं वो दिन, जब हम ख्वाबों में जिया करते थे,जमीं
रिश्ते टूटते नही हैं, बस मिलने-मिलाने का लहज़ा बदल जाता
सीमा पर चल रहे (छद्म) युद्ध ने मन में एक
एक अरसेसे कुछ लिखा ही नहीं।ऐसा नहीं कि कुछ मिला ही नहीं!कलम
सत्य क्या है ?जो आँखों के सामने घटित हुआ?जो इतिहास
इलाहाबाद....!! कहाँ से शुरू करूँ..… एक ऐसा शहर जो कि
(1) मेरा वज़ूद मैं कहीं खुद को ही छोड़ आया हूँ
पुरानी यादें भी कभी ताजा कर लो,पूरे किस्से नहीं तो,
रातों के अंधेरों में, इन उजले सबेरों में,घनघोर घटाओं में,
"भावनाओ को समझो"...ये वाक्य आप सब ने सुना होगा. सुनील