Khushq Aankhein aur Mera Desh
अश्क़ सूख गए कुछ इस तरह,सोचते-सोचते हो गयी सहर।ख़ुश्क़ आँखों ने
अश्क़ सूख गए कुछ इस तरह,सोचते-सोचते हो गयी सहर।ख़ुश्क़ आँखों ने
इस बार दीवाली कि धूम ही कुछ और थीतेल के दिए
चलो एक छोटा घरोंदा बनातें हैं,कुछ ईंट तुम लाओ, कुछ हम
पत्थरों के हैं ये जंगल, पत्थरों के ये मकां,बन गया
बसों में जूझती ज़िन्दगी को देखता हूँ, तो
काले मेघों का एक जत्था दूर गगन में छाया,ऐसा सुन्दर
मन में एक हलचल सी थी,धुआं था पर आग ना थी।पूछ
आज मैंने सुबह उठ कर ये समाचार सुना की, दिल्ली
पुरानी यादें भी कभी ताजा कर लो,पूरे किस्से नहीं तो,
बड़े अरसे से आरज़ू थी, कि तेरा दीदार करें,तू वक़्त