कॉमन-वेल्थ खेल!
पूरा सरकारी तंत्र कॉमन-वेल्थ खेल का नारा लगा रहा,कोई खेल के
पूरा सरकारी तंत्र कॉमन-वेल्थ खेल का नारा लगा रहा,कोई खेल के
क्या लिखूं? कुछ भी समझ नहीं आता...शब्द आते है पर भाव
मैंने गाँव में हरियाली देखी थी...सुरमई शाम, और खुशहाली देखी
बारिश कि बूंदों ने फिर, अपना करतब दिखलाया.धरती के सीने पर,
बचपन के दिन फिर से आयें....झूला झूलें, गाना गायें....मिटटी में
आज फिर से क्रांति का, बिगुल बजाते क्यूँ नहीं?एक नए समाज को, फिर बनाते क्यूँ नहीं?क्यूँ
सूखी धरती के परतों को देखकर मन व्यथित सा हो
क्षण प्रतिक्षण जीवन कि नैया, मध्य भंवर को जाती है.पतवार ना