कैंपस की यादें – एक पुरानी कविता (२००७)
भूले नहीं वो दिन, जब हम ख्वाबों में जिया करते थे,जमीं
भूले नहीं वो दिन, जब हम ख्वाबों में जिया करते थे,जमीं
आज फिर वही मेरी कहानी आ गयीकुछ तेरी और कुछ मेरी जुबानी
रात को सुबह होने तक मत देख।कुछ सपने देख, सपनों
एक अरसेसे कुछ लिखा ही नहीं।ऐसा नहीं कि कुछ मिला ही नहीं!कलम
एक अलग प्रयास, सही गलत पता नहीं। और जैसा कि
वेदना क्या केवल स्वरों सेमुख के हाव भाव व्यर्थतुम्हे मेरे
हर्ष, उल्लास, फैला चहुँ ओर,देखो-देखो आया माखन चोर।नटखट चाल, दधि, मुख पर
सत्य क्या है ?जो आँखों के सामने घटित हुआ?जो इतिहास
भारत, खास करके दिल्ली, में एक अलग और अच्छे तरीके
कुछ हवा भी सर्द रही होगीकुछ दर्द भरी आहें भी..!तुम्हारी