स्वतंत्रता दिवस
भारतवर्ष के ६३वें स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में, मैं अपने
भारतवर्ष के ६३वें स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में, मैं अपने
अकेले तन्हा मै बैठा हूँ, घर से इतनी दूर.पर मै
कई रास्ते मिले, कई मंजिलें मिलीं,जिंदगी के सफ़र में, कई
पूरा सरकारी तंत्र कॉमन-वेल्थ खेल का नारा लगा रहा,कोई खेल के
क्या लिखूं? कुछ भी समझ नहीं आता...शब्द आते है पर भाव
मैंने गाँव में हरियाली देखी थी...सुरमई शाम, और खुशहाली देखी
बारिश कि बूंदों ने फिर, अपना करतब दिखलाया.धरती के सीने पर,
बचपन के दिन फिर से आयें....झूला झूलें, गाना गायें....मिटटी में
आज फिर से क्रांति का, बिगुल बजाते क्यूँ नहीं?एक नए समाज को, फिर बनाते क्यूँ नहीं?क्यूँ
सूखी धरती के परतों को देखकर मन व्यथित सा हो