Gazal

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हिज्र का वक़्त है, फिर मिलें ना मिलें

हिज्र का वक़्त है, फिर मिलें ना मिलेंइक हर्फ़ ही सही, थोड़ा तो गुनगुना दे!तिरा ख़ंजर मिल गया यूँ मिरी पीठ से झूठा ही सही, चंद अश्क़ तो बहा दे।ज़मानतों पर रिहा अब ज़िंदगी अपनीजो भी कर, चल फ़ैसला तो सुना दे।ऐसा क्यूँ कि लहू बिखरा है मैदानों मेंकम-से-कम इश्क़ वाली हवा तो चला दे।तू आया, ठहरा और फिर चल दियाजा मगर अपनी यादों को तो ठहरा दे।

जब चली मेरी क़िस्मत मुझे छोड़ कर

                जब चली मेरी क़िस्मत मुझे छोड़ कर        बाजुओं पर मेरे फिर यक़ीं आ गया। 

यूँ न देखो मुझे आइने में सनम

यूँ न देखो मुझे आइने में सनम,मेरे चेहरे की रंगत संवर जाती है।तुम न गुज़रो मेरे रास्तों से सनम,तेरे साँसों की ख़ुशबू क़हर ढाती है।जो बुलाओ मुझे चाँद कह कर कभी,मेरे चेहरे की लाली ठहर जाती है।पास आओ मेरे साथ बैठो ज़रा,मेरी नासाज़ तबियत सुधर जाती है।एक अरसा हुआ तुमसे बिछड़े हुये,तेरी यादों में जाँ अब निकल जाती है।

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