जो यूँ ही गुज़र जाये वो ज़िन्दगी कैसी?
जो यूँ ही गुज़र जाये वो ज़िन्दगी कैसी? जो दिल
वो जिसे इश्क़ कहते हैं, ज़िस्मानी नहीं होता
वो जिसे इश्क़ कहते हैं, ज़िस्मानी नहीं होता। वरना
यही इश्क़ है
ये जो तेरा सर झुका कर शर्माना है, यही इश्क़
मसरूफ़ हो मगर इश्क़ किया करो
कभी यूँ ही बेमतलब साथ दिया करो, मसरूफ़ हो मगर
तुम भी दोस्त क्या ख़ाक जीते हो
भीड़ में जो इस कद्र तन्हा घूमते हो, तुम भी
तेरे उसूल गुनहगार हैं मेरे बिखर जाने के
तेरे उसूल गुनहगार हैं मेरे बिखर जाने के,तेरे एहसासों के कदरदान हम पहले भी थे।साँस आती थी तेरे पास आने के बाद,ज़िंदगी पे तुम मेहरबान पहले भी थे।ग़म का साया दूर रहा तेरे होने से,निचले पायदान पर हम पहले भी थे।दूर से ही सही, पर साथ निभाते रहना,मेरे बाग़ के बाग़बान तुम पहले भी थे।
अपने गीतों में मेरा नाम गुनगुनायेगी
अपने गीतों में मेरा नाम गुनगुनायेगी,लफ्ज़ बन कर मेरे रूह पे वो
हम अक्स ढूँढते रहे उनके चेहरे में
हम अक्स ढूँढते रहे उनके चेहरे में,वो हाथ फेरते रहे उनके चेहरे में।दिया था, बुझ गया यूँ ही मगर,तूफ़ान ढूँढते रहे उनके चेहरे में।ज़माने में हज़ार रंग बिखरे हुए से हैं,हम रंग ढूँढते रहे उनके चेहरे मेंदे दिया मात समंदर को भी, मगरडूब ही गये हम उनके चेहरे में।चलो दूर