ये जो तेरा सर झुका कर शर्माना है,
यही इश्क़ है, यही क़ातिलाना है।
साँस थम सी गयी एक आहट से,
ये तेरा जाना और फिर चले आना है।
ओस की बूंदें यूँ खेलती हैं घास पर,
जैसे तेरी पायल का छन-छनाना है।
इतना वक़्त दे-दे तेरी अंगूठी को मेरे पास,
मुझे इसका निशां मुस्तक़िल[1] कराना है।
वो जो कहते हैं आग का दरिया है इश्क़,
फिर इसके पीछे पागल क्यूँ ज़माना है?
1- permanent