आज twitter पर, एक बंधू से चर्चा हो रही थी, चर्चा के ही दौरान “नेता जी” का जिक्र हो आया। हम दोनों इस बात से सहमत थे कि इस देश में तो एक ही नेता जी थे पर आज कल बहरूपियों का ज़माना है। प्रस्तुत हैं मेरे विचार:
वो बोलते थे खून दो आज़ादी दूंगा
ये बोलते हैं खून पियूँगा और कुछ नहीं दूंगा।
वो बोलते थे मै तुम्हारे साथ लड़ूंगा
ये बोलते है तुम मेरे लिए लड़ो और मरो।
वो दान मांगते थे देश के लिए
ये देश लूटते हैं, अपने लिए।
उन्होंने जान गंवाई, कुछ सिला भी नहीं मिला
इन्होने जीने भी नहीं दिया और सब कुछ छीन लिया।
उन्होंने ने अंग्रेज़ों के छक्के छुड़ाए
ये हमारे छक्के छुड़ा रहे हैं।
काश वो नेता जी कुछ और दिन साथ होते
इन धूर्त नेतोओं के चंगुल से हम कहीं दूर होते।
अब तो यही आस है कि ‘वो’ नेता जी फिर से आये,
‘खून’ भले ही ले ले हमारा, पर हमे ‘आज़ादी’ दिलाएं।
Very true