संबंधों मे अायी दरार चाहे जितना भी भर लो, थोड़ा खुरदुरापन रह ही जाता है।
रिश्तों में शक नासूर की तरह होता है ।
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लगता है कुछ दर्द सहा है तुमने; सच सा निकलने लगा है ज़ुबां से।
संवेदनाओं को समझने का दावा करते हो? मेरी चुप्पी को समझ पाए हो कभी??
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इस आभासी दुनिया में, क्या जीत मेरी, क्या हार तेरी!
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सफर लम्बा है, चलो चुपचाप बातें करते हैं।
फ़ुर्सत में हो? चलो चुपचाप बातें करते हैं।
दिल दुःख रहा है? चलो चुपचाप बातें करते हैं।
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उनके आँगन से एक शोर सा उठा है/ अल्फ़ाज़ बताते हैं कि ज़िक्र मेरा ही था।
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लोकतंत्र में यदि व्यक्ति विशेष ही मुद्दा बन जाए तो ये मान लेना चाहिए कि समर्थक एवं विरोधियों ने सोचने की क्षमता खो दी है।
हम आज के सबसे बड़े क्रन्तिकारी,
हमको चापलूसी की बीमारी।
अन्नदाता, हमारे भगवान
बाकी सब छूत की बीमारी।
आग लगाएंगे देश में,
बस यही कोशिश हमारी।
wow very nice..happy new year2017
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