२४ मार्च २०२० को प्रधान मंत्री जी ने ये घोषणा की कि १४ अप्रैल २०२० तक देश भर में लॉक डाउन या ताला बंद रहेगा । स्वतंत्र भारत के इतिहास में संभवतः पहली बार हुआ है कि पूरा देश एक झटके में रोक दिया गया है। इस बात का अंदेशा मुझे पहले से ही था क्योंकि जबसे ये महामारी फैली है तबसे हमारी संस्था के अधिकतर लोग इस समस्या से लड़ने के लिये केंद्र और राज्य सरकारों की मदद में लगे हुये हैं और इसलिये कुछ बातें छन-छन कर हमारे पास भी पहुँचती रहती हैं।

पिछले पोस्ट में आपने पढ़ा की Corona वायरस और इससे होने वाली बीमारी के बारे में। आज मैं इस महामारी से बचाव में किये जा रहे कामों का उल्लेख करूँगा। एक जन-स्वास्थ्य के बहुत बड़े शोधकर्ता और विशेषज्ञ हैं, डॉ टॉम फ्रिएडेन, उनकी मानें तो (और अभी तक डेटा भी यही कहता है) यह वायरस अधिक उम्र और पहले से किसी बीमारी से ग्रसित लोगों को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। इस स्तर का प्रभाव इससे १०० साल पहले आये महामारी में ही देखा गया था। एक दूसरी प्रमुख बात यह है कि बच्चों को यह वायरस बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं कर पा रहा है (अभी तक)।

COVID-19 से लड़ने के मुख्य तरीके हैं:

  1. बीमारी को नियंत्रित करना – यह महामारी का पता चलते ही शुरू हो जाना चाहिये। इसमें प्रमुख हैं – (i) संदिग्ध लोगों की जाँच करना, (ii) संदिग्ध लोगों को आम जनता से अलग रखना, (iii) अस्पतालों को सुदृढ़ बनाना और वहां काम कर रहे लोगों को सुरक्षित रखना, और (iv) उपचार से सम्बंधित संसाधनों को समय पर उपलब्ध कराना। 
  1. बीमार लोगों से संपर्क में आये हुये लोगों के बारे में पता करना एवं उनको घेर (contain) कर के रखना ताकी बीमारी समुदाय में बाकी लोगों को ना फैले। वैसे भारत जैसे देश में ये इतना आसान नहीं है। 
  1. लोगों में सफाई और अपने-आप को घर में रहने के लिये व्यवहार में परिवर्तन पर ध्यान देना। ये चिकित्सीय प्रक्रिया नहीं है बल्कि इसे समाजिक और व्यवहारिक परिवर्तन के दायरे में गिना जाना चाहिये। 
  1. अगर महामारी और भी विस्तृत रूप ले लेती है तो स्वयं में व्यवहार परिवर्तन काम में नहीं आता और फिर सरकारों को लॉक-डाउन जैसे कड़े कदम भी उठाने पड़ते हैं।     

अब अगर लॉक-डाउन की बात करें तो ऐसा नहीं है कि ये अपने आप में एक सम्पूर्ण समाधान है और इसको लम्बे समय तक रखने से महामारी की समस्या दूर हो जायेगी। लॉक-डाउन के २ मुख्य उद्देश्य होते हैं – (i) महामारी के त्वरित फैलाव को धीमा करना, और (ii) स्वास्थ्य व्यवस्था को थोड़ा और समय प्रदान करना ताकि वो इस महामारी से लड़ने के लिये फिर से एक बार तैयार हो सके। डॉ टॉम फ्रिएडेन इस विषय पर भी अपना मत रखते हुये कहते हैं कि लॉक-डाउन की व्यवस्था थोड़े-थोड़े अंतराल पर खुलती-बंद होती रहनी चाहिये। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि कोई भी देश लम्बे समय तक लॉक-डाउन सहन नहीं कर सकता और उसकी अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो सकती है। 


लेकिन लॉक-डाउन हटाते समय भी कुछ प्रमुख बातों का ध्यान रखना चाहिये – (i) संक्रमण पहले जैसी तेजी से न फ़ैल रहा हो और लगभग हर पॉजिटिव केस के बारे में हमें पूरी जानकारी हो, (ii) चिकित्सा-स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तयारी में हो कि अगर संक्रमण बढ़े तो उससे लड़ सके, और (iii) जन-स्वास्थ्य व्यवस्था परिक्षण, पॉजिटिव लोगों के संपर्क में आये हुये लोगों के बारे में पता करने और उन्हें समाज से अलग (isolate) करने में सक्षम हो। ये तो हो गयी व्यवस्था की बात, कुछ और बातों का भी ध्यान रखना चाहिये – (i) जो लोग पहले से किसी अन्य बीमारी से बीमार हैं उनका लगातार ध्यान रखने की व्यवस्था करना, (ii) लोगों तक रोजमर्रा की चीजों की व्यवस्था करना और वित्तीय सहायता पहुँचाना, और (iii) फिर से लॉक-डाउन के लिए तैयार रहना यदि संक्रमण तेजी से बढ़ना शुरू हो। 

एक बड़ी चर्चा कितने टेस्ट किये जा रहे हैं उस पर चल रही है। किसको टेस्ट करना है और कब करना है ये महामारी के अलग-२ चरण पर भी निर्भर करता है। अब यदि संक्रमित लोगों की संख्या नगण्य है तो ऐसे लोगों को आम जनता से अलग रखने, उनके संपर्क में आये लोगों के बारे में पता करने और उनपर ध्यान रखना प्रमुख रणनीति होनी चाहिये। पर यदि संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है तो इसके उद्गम स्थानों को चिन्हित करें और triage (आपातकाल में कार्यवाही की प्राथमिकता का निर्धारण ) के माध्यम से ये सुनिश्चित करने का प्रयास करें कि किसे टेस्ट और उपचार की आवश्यकता है और किसे अभी घरों में या आइसोलेशन केंद्रों में रखा जा सकता है। कई देशों में टेस्ट किट की कमी होने के कारण triage करना अति-आवश्यक हो जाता है। कई देशों में जिन संदिग्ध व्यक्तियों में बीमारी के लक्षण नहीं होते उन्हें टेस्ट भी नहीं करते और ये वैज्ञानिक रूप से सिद्ध प्रक्रिया है। जब महामारी का असर कम होने लगता है तब भी नए और पुराने केसेस को टेस्ट करना और भी आवश्यक हो जाता है। इससे बीमारी को फिर से फैलने से रोकने में मदद मिलती है। पर सबसे जरूरी यह है की टेस्ट और उपचार की लड़ाई अगले कुछ महीने में नहीं ख़त्म होने वाली, जब तक की एक वैक्सीन तैयार न हो जाये और उपचार का एक प्रोटोकॉल न बन जाय। इसलिये जहाँ कहीं भी नए संक्रमण की सूचना मिले वहाँ टेस्ट की संख्या बढ़ानी पड़ेगी। 

ये पोस्ट लम्बा हो रहा है पर एक आखिरी बात कहना आवश्यक है – इस बीमारी का अभी तक कोई ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल नहीं है और इस वायरस का कोई वैक्सीन नहीं। अधिकतर शोध और परीक्षण अभी लैब में ही चल रहे हैं और उनका अभी मनुष्यों पर प्रभाव सुनिश्चित होना शेष है। और इसलिये हमें बचाव के जितने भी रूप हो सकते हैं उन्हें अपनाना चाहिये। 

और ये आप समझ लीजिये कि सामान्य समय में आपको अपने अधिकारों को संरक्षित करने की पूरी छूट है और करना भी चाहिये, पर महामारी और विपदा के समय सामूहिक (समुदाय के) अधिकार अधिक महत्वपूर्ण बन जाते हैं और आपके व्यक्तिगत अधिकार केवल तब तक मान्य हैं जब तक वे सामूहिक अधिकारों में बाधा नहीं डालते। आपके अधिकार निर्वात में नहीं होते, कर्तव्यों से उनका सामंजस्य होना पड़ता है। विपदा की स्थिति में यदि आप अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर रहे तो सरकार का दायित्व बनता है कि वो आपको बल पूर्वक आपके कर्तव्य याद दिलाये। अगर ऐसा नहीं करती है तो सरकार अपने कर्तव्य से पीछे हट रही है!

सुरक्षित रहिये – दूरी बनाये रखिये।

One Comment

  1. Rajesh Balasubramanian April 9, 2020 at 5:37 pm - Reply

    Thank you for your valuable information sir.

    Regards
    Rajesh Balasubramanian
    Founder & CEO
    WORLD OF WISDOM
    ceo@wowcbs.org
    Mob: +91-96989-88939

Leave A Comment