जब चली मेरी क़िस्मत मुझे छोड़ कर
बाजुओं पर मेरे फिर यक़ीं आ गया।
हौसलों से मेरी जो ग़मी हट गयी
मेरे उजड़े मकां में मकीं[1] आ गया।
हसरतों को मेरी रोज़ ढोता रहा
ख़ुद को मैं मिल गया जब यक़ीं आ गया।
आँधियों ने चराग़ों को बेबस किया
हिम्मतों से फिर शोला यूँही आ गया।
ये हज़ारों किताबें हैं तहरीक[2] की,
जब पढ़ीं तो लगा एक जहीं[3] आ गया।
इन उड़ानों को अब रोक पाओगे क्या?
इन परों में ज़ुनूँ का तनीं[4] आ गया।
[1]- मकान में रहने वाला
[2]- आन्दोलन
[3]- intelligent
[4]- खिंचाव, stretched