क्या लिखूं?
क्या लिखूं? कुछ भी समझ नहीं आता...शब्द आते है पर भाव
क्या लिखूं? कुछ भी समझ नहीं आता...शब्द आते है पर भाव
मैंने गाँव में हरियाली देखी थी...सुरमई शाम, और खुशहाली देखी
बारिश कि बूंदों ने फिर, अपना करतब दिखलाया.धरती के सीने पर,
बचपन के दिन फिर से आयें....झूला झूलें, गाना गायें....मिटटी में
सुन्दरता कि परिभाषा, परिभाषित करने आई है.एक अनिंद्य सुंदरी सपनो
आज फिर से क्रांति का, बिगुल बजाते क्यूँ नहीं?एक नए समाज को, फिर बनाते क्यूँ नहीं?क्यूँ
कर्मठी पुरुष की कार्यक्षमता प्रतिकूल परिस्थितियों में ही रंग लाती
सूखी धरती के परतों को देखकर मन व्यथित सा हो
क्षण प्रतिक्षण जीवन कि नैया, मध्य भंवर को जाती है.पतवार ना