मेरा राजनैतिक अनुभव: २०१०
राजनीति हमारे समाज का इक अभिन्न अंग है, चाहते या ना
राजनीति हमारे समाज का इक अभिन्न अंग है, चाहते या ना
विचारधारा बदलने कि आवश्यकता है,चुनौती लेने कि आवश्यकता है,भ्रष्ट नहीं है
कोई दर्द आँखों में पलता है,हर घड़ी, इक टीस सी देता
मेरी ये कविता वीर रस कि है, मैंने अपने भावों
भारतवर्ष के ६३वें स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में, मैं अपने
अकेले तन्हा मै बैठा हूँ, घर से इतनी दूर.पर मै
कई रास्ते मिले, कई मंजिलें मिलीं,जिंदगी के सफ़र में, कई
पूरा सरकारी तंत्र कॉमन-वेल्थ खेल का नारा लगा रहा,कोई खेल के
हर नीद में हर ख्वाब में...हर सुबह में, हर रात