जो यूँ ही गुज़र जाये वो ज़िन्दगी कैसी?

जो दिल से ना आये वो बंदगी कैसी?

 
बात तो तब है जब चर्चे हों ज़माने में,
चुप-चाप चले जाने में ताबिंदगी[1] कैसी?
 
इश्क़ शिद्दत से किया तो फिर गिला कैसा?
ग़र महबूब ना मिला तो शर्मिंदगी कैसी?
 
सब कुछ मिलता नहीं सभी को यहाँ पर,
जो तुम्हारा नहीं उसकी ख़्वाहिंदगी[2] कैसी?
 
हर कदम पर रोड़े हैं इस राह में ‘राहुल’,
जो लड़खड़ा गए तो फिर पाइंदगी[3] कैसी?
 
1-चमक, जगमगाहट, ज्योति; 2-desire; 3-स्थायित्व, stability

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