हमारे जीवन में चाहे कितना भी दुःख क्यों ना हो, स्वतंत्रता दिवस का उत्सव अवश्य मनाना चाहिए। ये इस बात का प्रतीक है की हम सभी इस देश के प्रति कितने संवेदनशील और कृतज्ञ हैं। देश केवल भौगोलिक सीमा में बंधा हुआ एक भू-भाग नहीं वरन ये यहाँ जन्मे हुए हर व्यक्ति की एक पहचान है। हमारे यहाँ अपनी समस्यायें एवं मतभेद हैं परन्तु इस देश से बाहर हम सब “भारतवासी” के तौर पर ही जाने जाते हैं। मै यहाँ देशभक्ति पर प्रवचन नहीं देना चाहता बस अपने मन के अंदर की कुछ बातें और अनुभव साझा करना चाहता हूँ। 

मुझे अच्छी तरह से याद है कि जिस साल मेरा सरकारी प्राथमिक विद्यालय में दाखिला हुआ था, उस साल १५ अगस्त के दिन मुझे “नन्हा मुन्ना राही हूँ” गीत सिखा कर भेजा गया था (अब घर में किसने सिखाया था याद नहीं)। मुझे कुछ भी समझ नहीं थी कि १५ अगस्त या स्वतंत्रता दिवस के क्या मायने हैं परन्तु इस गीत पर खुद झूमते हुये मै आज भी याद कर सकता हूँ 🙂 काफी समय तक ये गीत मेरा पसंदीदा रहा था और अभी पिछले सप्ताह ही मैंने ये गीत अपनी भतीजी को सिखाने का प्रयास किया। 

पता नहीं आप सब को कैसा लगेगा परन्तु एक बार के स्वतंत्रता दिवस समारोह (संभवतः कक्षा-६) में मैंने रामचरितमानस – उत्तर काण्ड से शिव स्तुति “नमामि शमीशान निर्वाण रूपं” याद कर के सुनाया था। उस समय घर पर हर बार कुछ ना कुछ नया सिखाया जाता था और विषय अधिकतर देशभक्ति एवं आध्यात्म से जुड़े होते थे। पूरा श्लोक सुनाने के बाद ऐसी अनुभूति हुई कि जैसे कोई कोई दुर्ग जीत लिया हो। 

कक्षा-३(या ४ याद नहीं) में पहली बार मुझे प्रभात फेरी का नेतृत्व करने का अवसर प्राप्त हुआ। करीब एक सप्ताह पहले मुझे ये बात मेरे प्रधानाध्यापक द्वारा बताई गयी थी। मेरी ख़ुशी कुछ ऐसी थी थी जैसे कि किसी खिलाड़ी को ओलम्पिक में अपने देश के खिलाड़ियों के दल का नेतृत्व करने में मिलती हो। प्रभात फेरी के लिए जो कविता निर्धारित की गयी थी वो थी द्वारका प्रसाद माहेश्वरी जी की “वीर तुम बढ़े चलो !! धीर तुम बढ़े चलो !!”  पूरे सप्ताह तैयारी चलती रही; बात बस इतनी नहीं थी कि कविता पूरी तरह से याद हो जाए, ध्यान इस पर भी था की जोश पूरी तरह से प्रकट होना चाहिए। घर पर काफी तैयारी करायी गयी और जब १५ अगस्त के दिन मै हाथ में तिरंगा लेकर अपनी गाँव की गलियों में निकला तो ऐसा लगा कि जैसे सबकी नज़र मेरे ऊपर ही है और मै एक राजा के जैसा महसूस कर रहा था। ये सिलसिला कक्षा-५ तक चला और हर स्वतंत्रता दिवस को मै एक छोटा-मोटा सलेब्रिटी तो बन ही जाता था 🙂

कक्षा-६,७ & ८ के दौरान मैंने हमेशा स्वतंत्रता दिवस पर भाषण प्रतियोगिता में भाग लिया और विषय अधिकतर मेरे पिता जी द्वारा सुझाये होते थे। इन तीन सालों में शायद एक बार मैंने प्रभात फेरी का नेतृत्व भी किया परन्तु विद्यालय अपने गाँव में ना होने के कारण वो आनंद नहीं आया 🙂 किसी एक भाषण में मैंने अपने पिताजी द्वारा सुझाई २ पंक्तियाँ बोली थीं, मुख्य अतिथि ने मुझे रु.५०/- इनाम में दिया था। ये पंक्तियाँ थी:


फुटपाथ पर पड़ा था वो भूख से मारा था 
कपड़ा उठा कर देखा तो पेट पर लिखा था 
सारे जहाँ से अच्छाहिन्दोस्ताँ हमारा – हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा” 

उनकी बताई एक और पंक्ति जो मुझे पसंद है (वैसे मुझे इन दोनों के रचयिता का नाम नहीं पता)

निर्माणों के पावन युग में युग निर्माण की बात न भूलें 
स्वार्थ साधना की आंधी में वसुधा का कल्याण ना भूलें। 

कक्षा-८ के बाद पता नहीं क्यूँ आगे मै स्वतंत्रता दिवस समारोहों में नहीं गया परन्तु हर साल मेरी माता जी के विद्यालय से उस दिन की मिठाई जरूर आती थी। मुझे आज भी इस बात का दुःख होता है कि मै कम से कम १२वीं कक्षा तक स्वतंत्रता दिवस समारोहों में जा सकता था, परन्तु पता नहीं क्यूँ मुझे ऐसा लगने लगा था कि बच्चों वाली मासूमियत कहीं छुप सी गयी थी। विश्वविद्यालय तक आते-२ तो सब कुछ गुम सा हो   ही नहीं चलता था की समारोह कहाँ है, कब है और कैसे पहुँचना है। 

इन सब के बाद भी एक प्रथा जो हमारे घर में आज भी मनायी जाती है – नववर्ष, जन्मदिवस जैसे त्योहारों की तरह हम स्वतंत्रता दिवस पर भी बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं। आशा बस यही करता हूँ कि हम स्वतंत्रता दिवस समारोह में भाग ले या ना लें, परन्तु अपने त्योहारों की तरह इसका भी सम्मान करें। किसी भी सरकार की जिम्मेदारी है कि वो एक बेहतर देश/समाज बनाने का हर संभव प्रयत्न करें परन्तु इससे हमारी खुद की जिम्मेदारी कहीं से भी कम नहीं होती:



जय हिन्द, जय भारत !

इस पोस्ट के माध्यम से अपनी कुछ पुरानी रचनाओं को आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूँ:




8 Comments

  1. Deaf Mamma August 14, 2014 at 6:08 pm - Reply

    सही कह रहे हैं पाण्डेय जी, बचपन की स्वतंत्रता दिवस की यादें अनमोल हैं. आज ही मैं यह सोच रही थी क्यूंकि मेरे ऑफिस के पास ही एक मैदान है जहाँ परेड का अभ्यास होती थी – की कभी भी स्कूल में ध्वज के कर नेतृत्व करने का मौका नहीं मिला 🙁 चलिए अच्छा है आप बचपन से ही सेलिब्रिटी रहे हैं 🙂

    http://sinhasat302.blogspot.in/

  2. anuj sharma fateh August 14, 2014 at 7:30 pm - Reply

    The very thing I would say at this stroke of midnight……No world is not sleeping and India has waken to lights and freedom……HAPPY INDEPENDENCE DAY

  3. Rahul Pandey's Blog August 15, 2014 at 5:50 am - Reply

    हा हा हा 🙂 सलेब्रिटी तो रहा की नहीं पता नहीं, पर खुद को ऐसा लगता था 🙂 अगर आपको याद हो तो IIHMR में मैंने १५ अगस्त को एक हिंदी कविता सुनायी थी, ये ८वीं के बाद पहली बार था जब मैं स्वतंत्रता दिवस पर मंच पर आया था। बहुत सुन्दर कविता है सुमित्रानंदन पन्त जी की, आप भी पढ़िए:

    चिर प्रणम्य यह पुष्य अहन, जय गाओ सुरगण,
    आज अवतरित हुई चेतना भू पर नूतन !
    नव भारत, फिर चीर युगों का तिमिर-आवरण,
    तरुण अरुण-सा उदित हुआ परिदीप्त कर भुवन !
    सभ्य हुआ अब विश्व, सभ्य धरणी का जीवन,
    आज खुले भारत के संग भू के जड़-बंधन !

    शान्त हुआ अब युग-युग का भौतिक संघर्षण,
    मुक्त चेतना भारत की यह करती घोषण !
    आम्र-मौर लाओ हे ,कदली स्तम्भ बनाओ,
    पावन गंगा जल भर के बंदनवार बँधाओ ,
    जय भारत गाओ, स्वतन्त्र भारत गाओ !
    उन्नत लगता चन्द्र कला स्मित आज हिमाँचल,
    चिर समाधि से जाग उठे हों शम्भु तपोज्वल !
    लहर-लहर पर इन्द्रधनुष ध्वज फहरा चंचल
    जय निनाद करता, उठ सागर, सुख से विह्वल !

    धन्य आज का मुक्ति-दिवस गाओ जन-मंगल,
    भारत लक्ष्मी से शोभित फिर भारत शतदल !
    तुमुल जयध्वनि करो महात्मा गान्धी की जय,
    नव भारत के सुज्ञ सारथी वह नि:संशय !
    राष्ट्र-नायकों का हे, पुन: करो अभिवादन,
    जीर्ण जाति में भरा जिन्होंने नूतन जीवन !
    स्वर्ण-शस्य बाँधो भू वेणी में युवती जन,
    बनो वज्र प्राचीर राष्ट्र की, वीर युवगण!
    लोह-संगठित बने लोक भारत का जीवन,
    हों शिक्षित सम्पन्न क्षुधातुर नग्न-भग्न जन!
    मुक्ति नहीं पलती दृग-जल से हो अभिसिंचित,
    संयम तप के रक्त-स्वेद से होती पोषित!
    मुक्ति माँगती कर्म वचन मन प्राण समर्पण,
    वृद्ध राष्ट्र को, वीर युवकगण, दो निज यौवन!

    नव स्वतंत्र भारत, हो जग-हित ज्योति जागरण,
    नव प्रभात में स्वर्ण-स्नात हो भू का प्रांगण !
    नव जीवन का वैभव जाग्रत हो जनगण में,
    आत्मा का ऐश्वर्य अवतरित मानव मन में!
    रक्त-सिक्त धरणी का हो दु:स्वप्न समापन,
    शान्ति प्रीति सुख का भू-स्वर्ग उठे सुर मोहन!
    भारत का दासत्व दासता थी भू-मन की,
    विकसित आज हुई सीमाएँ जग-जीवन की!
    धन्य आज का स्वर्ण दिवस, नव लोक-जागरण!
    नव संस्कृति आलोक करे, जन भारत वितरण!
    नव-जीवन की ज्वाला से दीपित हों दिशि क्षण,
    नव मानवता में मुकुलित धरती का जीवन !

  4. Rahul Pandey's Blog August 15, 2014 at 5:51 am - Reply

    thanks sir..and wish you a very happy independence day !!

  5. Unknown August 15, 2014 at 10:14 am - Reply

    भाई Rahul ji ye lekh padh kar bachpan yaad aa raha hai.aapko swatantra divas ki badhai

  6. Unknown August 15, 2014 at 10:15 am - Reply

    भाई Rahul ji aaj mera happy wala birth day bhi hai.

  7. Deaf Mamma August 19, 2014 at 5:55 am - Reply

    sundar kavita hai

  8. Yo Kaka March 22, 2020 at 7:15 am - Reply

    Hi Rahul ji, Bahot acha likha hai aapne 15 August Swatantrata Diwas ke baare me.

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