क्षण प्रतिक्षण जीवन कि नैया, मध्य भंवर को जाती है.
पतवार ना हो यदि संस्कारों कि तो फिर डूब ही जाती है.

इसलिए हे मनुष्य संस्कारित बनो सुविचारित बनो,
जीवन के पथ पर सदैव अग्रसर रहो, ना पीछे हटो.
असफलता के क्षण में भी साहस का साथ ना छोड़ो तुम,
पुनः विजयश्री प्राप्त करो, विश्वजीत दिग्विजयी हो तुम.
अपने इस कर्त्तव्य लोक में स्वार्थपरकता का त्याग करो,
वसुधैव कुटुम्बकम के पथ पर जीवन का निर्वाह करो. 

One Comment

  1. ANAND TRIPATHI July 7, 2010 at 6:10 pm - Reply

    Good keep it up

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