अकेले तन्हा मै बैठा हूँ, घर से इतनी दूर.
पर मै भी क्या कर सकता हूँ, मै तो हूँ मजबूर.

जब याद तुम्हारी आती है, ये ह्रदय व्यथित हो जाता है,
तेरी आँचल कि खातिर “माँ“, ये मन तडपा जाता है.

क्या करूँ कहूँ मै किससे? ये रात भयावह लगती है,
रह-२ कर संशय उठता है, जब नीद मुझे आ जाती है.

हर सपने में तेरा चेहरा, तेरा ही अक्स उभरता है,
तू अभी यहाँ आ जायेगी, हर पल ऐसा लगता है.

2 Comments

  1. Saptarshi Purkayastha August 5, 2010 at 4:27 am - Reply

    nice… simple and sweet

  2. Rahul Pandey's Blog August 5, 2010 at 5:36 am - Reply

    thanks brother..its very close to my heart

Leave A Comment