अकेले तन्हा मै बैठा हूँ, घर से इतनी दूर.
पर मै भी क्या कर सकता हूँ, मै तो हूँ मजबूर.
जब याद तुम्हारी आती है, ये ह्रदय व्यथित हो जाता है,
तेरी आँचल कि खातिर “माँ“, ये मन तडपा जाता है.
क्या करूँ कहूँ मै किससे? ये रात भयावह लगती है,
रह-२ कर संशय उठता है, जब नीद मुझे आ जाती है.
हर सपने में तेरा चेहरा, तेरा ही अक्स उभरता है,
तू अभी यहाँ आ जायेगी, हर पल ऐसा लगता है.
nice… simple and sweet
thanks brother..its very close to my heart