कई बार सोचा की इस अनुभव को आप लोगों के साथ साझा करूं, पर अक्सर ये दूसरी प्राथमिकताओं में कहीं पीछे छूट गया। आज फिर से याद आया और समय भी मिला तो प्रयास कर रहा हूँ। 

पिछले एक लेख में (मै और मेरा इलाहाबाद) मैंने अपनी स्नातक की पढ़ाई के बारे में संक्षेप में बताया है। उसके बाद मै जन-स्वास्थ्य (public health) के क्षेत्र में प्रबंधन (management) की पढाई करने के लिए ‘भारतीय स्वास्थ्य प्रबंधन अनुसन्धान संस्थान, जयपुर (IIHMR, Jaipur) आ गया। अब ये कहानी कभी और सुनाऊंगा की गणित, भौतिकी और रसायन विज्ञान पढ़ने के बाद, मै जन-स्वास्थ्य प्रबंधन के क्षेत्र में कैसे आ गया। अभी मै आपको सीधे लिए चलता हूँ – फ़रवरी २००६; गुजरात राज्य के एक आदिवासी जिले नर्मदा‘ का मुख्यालय – राजपीपला। 

संस्थान की तरफ से campus placement कराने का भरपूर प्रयास हो रहा था, पर किन्ही कारणो वश, गुजरात सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने अपने मुख्यालय गांधीनगर में ही साक्षात्कार कराने का निर्णय लिया। ये घटना २ कारणों से महत्वपूर्ण थी – (१) हमारे संस्थान से पहली बार कोई सरकारी विभाग, इतने बड़े स्तर पर, placement कराने के लिए तैयार था और (२) गुजरात सरकार द्वारा, राष्ट्रिय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (National Rural Health Mission-NRHM) के अंतर्गत, जिला कार्यक्रम प्रबंधक (District Program Manager-DPM) के पद के लिए, बिना पूर्व-अनुभव वाले नौजवानो की नियुक्ति करने का प्रयास किया जा रहा था (यह एक क्रन्तिकारी और जोखिम भरा कदम था, परन्तु बाद में बहुत से राज्यों ने अपनाया). खैर जनवरी २००६ में हमारा साक्षात्कार हुआ और फरवरी के पहले सप्ताह में ही हमें कार्यभार ग्रहण करने के लिए कहा गया – मेरी तैनाती नर्मदा जनपद में हुई (यहाँ की ९०% से अधिक जनसँख्या आदिवासी है)।

गुजरात के बारे में अधिक कुछ तो नहीं पता था, पर सभी लोगों ने कम से कम एक बात जरूर कही की वहां खाने में मीठा मिलाया जाता है (वैसे गुजराती में मिठू का मतलब नमक होता है ;)। राजपीपला जाने के लिए मैं ४ फरवरी को अवध एक्सप्रेस से गोरखपुर से वडोदरा के लिए रवाना हुआ। ५ फरवरी की रात ९-१० बजे के करीब मै वडोदरा पहुंचा; रात भर स्टेशन पर ही आराम करने के बाद सुबह ८ बजे मै राजपीपला के लिए प्रस्थान किया, जो की वडोदरा से करीब ७५ किमी दूर है। १०:३० बजे के करीब मै राजपीपला बस स्टैंड पर उतरा। 

एक बहुत ही छोटा और पुराना सा दिखने वाला शहर, संकरी सड़कें, दुकान और घर एक दूसरे में मिले हुए, २ मुख्य सड़कें – एक काला घोड़ा चौराहे से बस स्टैंड के लिए और दूसरी कलेक्टर ऑफिस से शहर के तरफ जो की अंत में काला घोड़ा पर आकर मिलती है। शहर कुछ इतना ही बड़ा की आप पैदल चलते हुए एक सिरे से दूसरे सिरे तक २५-३० मिनट में पूरा कर सकते हैं। शहर को २ तरफ से करजन नदी ने घेर रखा है। शाम के समय छोटी पहाड़ियों के पीछे से छन कर आती रोशनी का नदी के पानी में इतराना बहुत ही सुन्दर लगता है। इतनी खूबसूरत जगह है की अगर में बयां करने की कोशिश करूँ तो एक पूरी किताब बन जाए। 


खैर, बस स्टैंड पर उतरने के बाद मैंने नियुक्ति पत्र पर दिए गए नंबर पर फ़ोन लगाया; अंग्रेजी में बात करने का प्रयास निरर्थक रहा और फ़ोन के दूसरी तरफ की हिंदी मेरे समझ में नहीं आई। करीब ३-४ प्रयासों के बाद मुझे बस इतना समझ आया कि मुझे जिल्ला (जिला नहीं) पंचायत की तरफ कूच करना है। गुजरात के लोगों की अच्छाई की बानगी मुझे वहीँ मिल गयी – जिस पीसीओ से मैंने फ़ोन किया था, उसके मालिक ने समझ लिया था की मै नया हूँ, उन्होंने खुद एक ऑटो रिक्शा मंगाया, मेरा सामान रखवाया, और अपने लड़के को मेरे साथ भेजा। बाद में इन्ही महाशय ने मुझे रहने के लिए घर भी दिलाया। आज भी इनके साथ सम्बन्ध कायम है।

पहले १-२ दिन में ही मुझे कुछ बातें समझ में आ गयी थी – लोग जिसे सम्मान देते हैं उस कप में नहीं प्याली में चाय पिलाते हैं 🙂 नमक को मिठू बोलते हैं, बड़े को मोटा भाई/बेन बोलते हैं, लड़कियां रात के १२ बजे भी बेधड़क घर से बाहर निकल सकती हैं, दाल में मीठा जरूर मिलाया जाता है और उतनी ही तीखी चटनी खाते हैं, बेसन ही उनका प्रमुख आहार है और लोगों को घर के बाहर का खाना कुछ ज्यादा ही पसंद आता है।

नौकरी की शुरुआत कुछ ज्यादा अच्छी नहीं रही, इसके २ कारण थे – (१) सरकारी व्यवस्था में यह पहला मौका था जब हम जैसे प्रबंधन के विद्यार्थी सीधे तौर पर नियुक्त किये गए थे (संविदा पर) (२) वहाँ के मुख्य जिल्ला आरोग्य अधिकारी (CDHO) को ऐसा लगता था की ये गुजरात से बाहर का व्यक्ति गुजरात की सरकारी व्यवस्था में एक प्रमुख पद पर कार्यरत नहीं होना चाहिए। इसके बाद की कहानी काफी लम्बी है पर संक्षेप में –

  • प्रारम्भ के ३-४ महीने मुझे बैठने के लिए स्थान नहीं दिया गया और ना ही कोई काम दिया गया 
  • मैंने कभी भी राज्य स्तर के अधिकारीयों से शिकायत नहीं की, क्योंकि मुझे ये पता था की अगर आगे निकलना है तो शिकायत से नहीं अपना स्थान बनाने से बात बनेगी 
  • ५ महीने बाद इस CDHO का तबादला किया गया – और इसमें मेरा भी योगदान था। गुजरात के स्वास्थ्य सचिव ने नए CDHO और मुझे इस जिले के सुधार की जिम्मेदारी सौंपी और करीब ८ महीनों में हम दोनों ने मिल कर काफी क्रांतिकारी निर्णय लिए और परिणाम दिखाए – इसी के फल स्वरुप मुझे १ साल में ही राज्य कार्यक्रम प्रबंधक (State Program Manager) बना दिया गया 
  • जमीनी स्तर पर सरकारी योजनाओं के नियोजन एवं कार्यान्वयन के गुर सीखे जो कि बाद में चल कर केंद्र सरकार में मेरे कार्यकाल के दौरान “नीति निर्माण” में सहयोगी बने 
  • जो सबसे बड़ी बात हुई वो यह है कि विपरीत परिस्थितियों में काम करने का एक आत्विश्वास पैदा हुआ जो कि आज भी मुझे आगे बढ़ने के प्रेरणा देता है। मेरे एक उच्चाधिकारी (District Development Officer, a young  IAS) ने कहा था  “अगर कुछ अच्छा काम किया है तो अपनी पीठ खुद थपथपाओ, और पहले खुद में विश्वास लाओ, दूसरे लोग बाद में साथ आ ही जायेंगे”। आज भी मै ये बात मानता हूँ और इसका अनुपालन करता हूँ।

गुजरात में मै २ साल रहा, एक साल जनपद स्तर पर तो अगला एक साल राज्य स्तर पर। NRHM में बहुत से ऐसे कार्य हुए जिनको प्रारम्भ कराने का श्रेय मुझे दिया गया, पर मै केवल यही कह सकता हूँ कि टीम बनाने एवं साथ काम करने की क्षमता ने ही मुझे आगे बढ़ाया। मेरे पिताजी हमेशा कहते हैं “अगर सार्वजानिक क्षेत्र में काम करना है तो हर श्रेणी के कर्मचारियों/अधिकारीयों का सहयोग ही आगे बढ़ाएगा”। गुजरात छोड़ने के बाद मैंने करीब ५ साल केंद्र सरकार में काम किया और करीब १.५ साल से विश्व बैंक के साथ काम कर रहा हूँ, परन्तु आज भी मै अपनी सफलता का पूरा श्रेय गुजरात में बिताये उन २ सालों को देता हूँ ,जिन्होंने मेरी नींव बनायीं। 


इस श्रंखला में मै समय मिलने पर कुछ और अनुभव साझा करूँगा, आशा है आपको गुजरात का एक संक्षेप वर्णन पसंद आया। 

10 Comments

  1. Unknown July 12, 2014 at 6:42 pm - Reply

    आपके जीवन के कुछ पहलू से रूबरू होने का मौका मिला .. विवधता पूर्ण !!

  2. Unknown July 12, 2014 at 7:12 pm - Reply

    Sundar

  3. Rahul Pandey's Blog July 13, 2014 at 5:53 am - Reply

    धन्यवाद…!!

  4. shrinivas pade July 13, 2014 at 6:50 am - Reply

    बढ़िया ! अच्छा लगा आपके बारेमे यह सब जानकर .भाग्यशाली हो आप के जिंदगी ने आपको मानवता की सेवा करने का अनमोल अवसर दिया है,इसका भरपूर उपयोग करके आपका और समाज जीवन सार्थक करने का प्रयास करिए . मै आपको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाये देता हूँ.
    — @annyatra

  5. Rahul Pandey's Blog July 13, 2014 at 7:43 am - Reply

    इतने सुन्दर विचारों के लिए आपका आभार…आज भी प्रयास यही है कि उसी उत्साह एवं भावना के साथ काम करता रहूँ। पुनः धन्यवाद।

  6. Rahul Pandey's Blog July 13, 2014 at 8:59 am - Reply

    धन्यवाद…विविधता जीवन को रंगों से भर देती है…प्रयास करूँगा कि ये विविधता इसी तरह बनी रहे 🙂

  7. Anonymous July 23, 2014 at 2:56 pm - Reply

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  8. Deaf Mamma August 4, 2014 at 12:01 pm - Reply

    आपके लेख से राजपीपला और कर्ज़न नदी देखने की ख्वाहिश हो गयी. मेरे पापा की घनिष्ट मित्र गुजराती हैं. इसीलिए आपके अनुभव की कल्पना कर पायि. गुजरातियों मैं गजब का फाइनेंस मैनेजमेंट स्किल होता है. सेविंग करने मैं माहिर होते हैं. आशा करती हूँ आपने भी सीखा होगा. आज मेरा भी ऑफिस मैं पहला दिन है.

  9. Rahul Pandey's Blog August 5, 2014 at 4:50 am - Reply

    आप राजपीपला होकर आइये, इतनी खूबसूरत पर "कम प्रसिद्द" जगह जल्दी मिलती नहीं है। यहीं पर सरदार सरोवर डैम भी है (केवड़िया कॉलोनी) -बहुत ही सुन्दर 🙂 गुजरात में तो इकोनॉमिक्स टाइम्स भी गुजराती में आता है, गाँवो में औरतें भी शेयर में इन्वेस्ट करती हैं। मजेदार लोग हैं। आपके पहले दिन पर हार्दिक शुभकामनायें 🙂

  10. Unknown November 13, 2014 at 7:56 am - Reply

    Waah Khub Sunadar !!! Rajpipla Itne saal k baad bhi yaad hai aapko

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