भीड़ में जो इस कद्र तन्हा घूमते हो,
तुम भी दोस्त क्या ख़ाक जीते हो।
आह भरते ही एहसास बिखर जाते हैं,
इतने नाज़ुक से तुम क्यूँ रहते हो।
तुम्हारे अंदर का आदमी परेशां सा है,
बिन पिये तुम कितना झूमते हो।
सवाल करना और ख़ुद जवाब देना,
ऐसे उलझन में हमेशा क्यों रहते हो!
ज़िंदगी फूलों की सेज नहीं “राहुल”,
काँटों से दोस्ती क्यूँ नहीं करते हो।