क्या लिखूं? कुछ भी समझ नहीं आता…
शब्द आते है पर भाव नहीं आता…
शब्द आते है पर भाव नहीं आता…
क्या भाव के बिना भी कविता बनती है?
शायद आज कल ऐसी ही रचनाये दिखती हैं..
मेरे मन को ये बदलाव रास नहीं आता….क्या लिखूं?…..
हम क्यों नहीं पढ़ते द्विवेदी और गुप्त को?
समझे उनके भाव, अलंकार और छंद को..
इनके बिना इक सुन्दर रचना का विश्वास नहीं आता….क्या लिखूं?…