कोई दर्द आँखों में पलता है,
हर घड़ी, इक टीस सी देता है,
हिस्सा बन गया है अब ये, मेरी ज़िन्दगी का!
आँसू के रस्ते भी नहीं निकलता है.


ढूंढता फिर रहा हूँ मै, अपनी ख़ुशी को,
पाना चाहता हूँ फिर उस हंसी को,
कल मिली थी खुशी कि कुछ लकीरें,
अब तो ढूँढने से भी उनका निशां नहीं मिलता है…….कोई दर्द आँखों में…!


लोग कहते हैं कि मैं ऐसा ना था,
सूरज कि किरनों सा! बुझती लौ सा ना था.
शायद कुछ सच सा है उनकी बातो में,
तभी तो हर सुबह में शाम का एहसास होता है….कोई दर्द आँखों में…!

One Comment

  1. shilpy September 20, 2010 at 1:11 pm - Reply

    true sir !

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