भूले नहीं वो दिन, जब हम ख्वाबों में जिया करते थे,
जमीं पर बैठे हुए, चाँद की बातें किया करते थे।
जमीं पर बैठे हुए, चाँद की बातें किया करते थे।
दोस्तों के साथ ही अपनी मंज़िल, कारवां सब कुछ नजर आता था
उनके साये में ही हमको, खुदा का घर नजर आता था।
उनके साये में ही हमको, खुदा का घर नजर आता था।
कॉलेज की गलियों में, खूबसूरत वादियों की झलक मिलती थी ,
अपनी तन्हाईयों को भी उन्ही पत्थरों पे पनाह मिलती थी
अपनी तन्हाईयों को भी उन्ही पत्थरों पे पनाह मिलती थी
फाउंडेशन डे, इंडिपेंडेंस डे, फ्रेशर पार्टी या एलुमनाई मीट: सबका अंदाज़ निराला था
हर शख्स को हमने अपने अंदाज़ से नचा डाला था।
आज भी याद करता हूँ उन पलों को तो एक कसक सी आती है
दिल में उन बीते दिनों की एक तस्वीर सी उभर जाती है।
दिल में उन बीते दिनों की एक तस्वीर सी उभर जाती है।
ना मिले रोज तो भी गम नहीं इस दिल को “राहुल”
उनकी यादें तो कम से कम मेरी पलकें भिगो जाती हैं।
उनकी यादें तो कम से कम मेरी पलकें भिगो जाती हैं।
उनकी यादें तो कम से कम मेरी पलकें भिगो जाती हैं……
बहुत खूब