मेरी उधार की ज़िन्दगी,
कट रही है।
बस कट ही रही है!

किश्त (दर्द) तो हर रोज़ भरता हूँ,
पर कमाल है कि-
उधार कम ही नहीं होता!
कैसा कर्ज़ है ये कि,
कर्ज़ देने वाले को (ख़ुदा)-
कोई ग़म नहीं होता।

मेरी उधार की ज़िन्दगी,
कट रही है।
बस कट ही रही है!

सोचता हूँ कि अब ये उधार,
चुकता कर दूँ;
एक बार में ही सारा हिसाब,
पुख़्ता कर दूँ।

असल (हिम्मत) तो मैं जुटा लूँगा,
सूद (खुशियों) का सहारा-
अब तुमसे है मेरे दोस्तों।

मेरी उधार की ज़िन्दगी-
शायद अब ख़ुद की हो जाये!

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