मेरी ये कविता वीर रस कि है, मैंने अपने भावों को एक नए तरीके से पिरोने का प्रयास किया है, आशा है आपको पसंद आएगी:
(उठ जरा कदम बढ़ा!
क्रांति का बिगुल बजा!
इस समाज कि जड़ों को,
आज फिर से तू हिला) – 2
तू क्रांतिवीर है, तू ही तो,
सर्वशक्तिमान है…….,
बदल सके है भाग्य को,
तू ही! महान है.
इन नसों में आज फिर से,
उष्ण रक्त तो बहा……
उठ जरा कदम बढ़ा…..!
उठ जरा कदम बढ़ा…..!
बह रहा है रक्त….
लोग हैं विरक्त…..
तू आज ले शपथ…..
दुश्मनों के नाश को
जुर्म के विनाश को.
आज फिर से प्रण उठा……
उठ जरा कदम बढ़ा…!
उठ जरा कदम बढ़ा…!
सो रहें है नौजवान ….
आज कर तू आह्वान….
फिर से गा तूं वीर गान…
चेतना नयी, फिर से उनमे तूं जगा…..
उठ जरा कदम बढ़ा…!
उठ जरा कदम बढ़ा…!
Good thoughts and nicely beaded into a beautiful poem..
thanks shilpy 🙂
वीर रस हमेशा प्रिय है, उस पर ऐसी मज़ा आ गया पढ के ! बेहतरीन !